करत करत अभ्यास के


“करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान |

रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान ||”


महाकवी वृंद द्वारा कही गयी ये पंक्तियाँ आज भी उतना ही महत्व रखती है जितना १७वीं शताब्दी में रखती थी | समय-समय पर आमजन और सामाज ने इन पंक्तियों का अवलोकन किया है और विषम परिस्थितयो में जीत को प्राप्त किया है |


इन पंक्तियों का सार समझने के लिए आपको किन्ही किताबो का अध्यन करने की ज़रूरत नहीं है | एक छोटी सी रेंगती हुई चींटी भी ये सिखला देती है की कैसे १० बार दिवार से फिसलने के बाद भी उस “किले” को फतह किया जा सकता है | ज़रूरत होती है तो केवल एक चिरस्थायी निश्चय की और उस पर टिके रहने के लिए हौसले की |


सबसे नवीनतम उदाहरण के तौर पर ओलिंपिक के भाला फेकन प्रतियोगिता के हमारे स्वर्ण पदक धारक, नीरज चोपड़ा को ही ले लीजिये | अपने बढ़ते मोटापे के कारण कसरत शुरू करने वाले नीरज को जब पहली बार भाला फेकन से अवगत कराया गया, तो उन्हें इसमें रूचि तो आयी, लेकिन अनुभव शुन्य था | इसके बाद हुए कठिन परिश्रम और अभ्यास का ही नतीजा रहा जो वो आज इस मुकाम पर पहुंचे |


अनेक मनुष्यो ने समय-समय पर कवी वृंद की इन पंक्तियों के लिए हामी भरी है, चाहे वो लोक सेवा की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राये हो, या फिर नई खोज में डूबे हुए वैज्ञानिक | लेकिन ऐसा नहीं है कि इन पंक्तियों को स्वयं किन्ही कठिन परिस्थितियों का सामना न करना पड़ा हो |


अनेक लोग एवं संगठन आज भी अनैतिक तरीको से कामयाबी को हासिल करने की कोशिश करते है, चाहे वो धन हो, अल्पप्रयास हो, या फिर गैर संविधानिक मार्ग ही क्यों नहीं | यहाँ पर ध्यान देने की ज़रूरत है की ऐसा नहीं है की ये लोग मेहनत में विश्वास नहीं करते, परन्तु धैर्य की कमी और कम से कम प्रयास में अधिक से अधिक पाने की लालसा इन्हे ऐसे कदम उठाने को विवश कर देती है | कवी वृंद अगर आज जीवित होते, तो उन्हें अवश्य ये देखकर निराशा होती |


पिछले २ वर्षो में इन पंक्तियों का मूल्य काफी अधिक हो गया है | कोरोना वायरस के आने से पुरे जगत को जिन समस्याओ का सामना करना पढ़ा है, उनके समाधान के लिए सामाजिक परिस्थितियों में अनेक परिवर्तन करने पढ़े है | ऑनलाइन कक्षाएं ले रहे अध्यापक हो या कोरोना के टीके की खोज में लगे वैज्ञानिक, सभी ने हिम्मत जुटा कर इन “नय जगत” की चुनौतियों को स्वीकारा है | उनके निरंतर प्रयास और अभ्यास का ही नतीजा है की आज वह विश्व के कंधे से कन्धा मिला कर खड़े है |


आज जब विश्व प्रगति की ओर अग्रसर है और चारों दिशाओ में प्रतियोगी माहौल है, ऐसे में अत्यंत आवश्यक हो जाता है की लोग परिश्रम और अभ्यास का महत्व बरक़रार रखे | जीत का ख्वाब और हार का डर तो हमेशा रहेगा | हमारा ध्यान केवल अपने लक्ष्य और उसकी प्राप्ती के लिए हमारे द्वारा किये जा रहे प्रयास पर होना चाहिए | आशा है अधिक लोग इस बात का मूल्य समझेंगे |


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